छठ महापर्व से जुडी जुडी हुई महत्वपूर्ण एवं विशेष तथ्य छठ पूजा छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई सबसे पहले छठ पूजा किसने किया छठ पूजा से जुड़े अनोखे तथ्य।

  1. बिहार के समस्तीपुर जिला में मोरवा प्रखंड के रघुनाथपुर गांव में पुरुष छठ करते हैं और महिलाएं सहयोग करती है । 5000 की जनसंख्या वाले रघुनाथपुर गांव में लगभग 1000 पुरुष छठ करते हैं ।
  2. ऐसी मान्यता है कि मुस्लिम आक्रांताओं के समय महिलाओं की रक्षा के कारण यह परंपरा शुरू हुई । महिलाओं को छठ घाट पर नहीं जाने दिया जाता था। छठ पूजा करने की जिम्मेदारी पुरुषों को दे दी गई थी।
  3. मान्यता ऐसी भी है कि दानवीर कर्ण के वंशज समस्तीपुर के अलावा वैशाली जिले के करनौती में रहा करते थे ।उनके पूर्वज करनौती से रघुनाथपुर आए थे। स्वयं कण॔ भी भगवान सूर्य के उपासक थे । खुद को उनका वंशज मानते हुए ,गांव के पुरुष छठ व्रत रखकर भगवान सूर्य की पूजा करते आ रहे हैं और यही परंपरा आज भी चल रही है।
  4. ऐसी मान्यता यह भी है कि लोक आस्था का पर्व छठ को माता सीता ने मुंगेर में किया था । वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भगवान राम वनवास के लिए प्रस्थान किए थे तब वह माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ स्थानीय मुद्गल ऋषि के आश्रम आए थे ।उसी समय मां सीता ने गंगा माता से वनवास काल के दौरान सब कुछ अच्छी तरह से बित जाने की प्रार्थना की थी और जब वनवास काल का कुशल समापन हो गया और लंका विजय के बाद तीनों जब वापस आए तो फिर से मुद्गल ऋषि के आश्रम गए थे , वहां ऋषि ने माता सीता को सूरज उपासना की सलाह दी थी। उन्हीं के कहने पर माता सीता ने गंगा नदी में टिले पर छठ का व्रत किया था ।माता सीता ने जिस कुंड में स्नान किया था उसे सीताकुंड का नाम दिया गया है। इसका वर्णन वल्मीकि रामायण और आनंद रामायण में भी की गई है ।यहां पर माता सीता के पवित्र चरण चिन्ह मौजूद है और इस जगह को सीता चरण के नाम से जाना जाता है ।
  5. नीचे रथ पर सवार भगवान सूर्यनारायण हैं और अरुण सारथी है। भक्तों के मन में ऐसी आस्था विद्यमान है कि यहां पर छठ व्रत पूजन और दर्शन करने से भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण होती है यहां बच्चों के मुंडन मंदिर में कराने का विशेष महत्व है ।मंदिर का प्रवेश द्वार पूरब की ओर ना होकर पश्चिम की ओर है ।पत्थरों को तराश कर मंदिर का निर्माण किया गया है तथा यहां की वास्तुकला आकर्षक और बहुत अनूठी है । यह मंदिर से भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि बिहार और उसके समीपवर्ती राज्यों के जिलों के मूल के विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए भी एक आस्था और विश्वास का प्रतीक है।
  6. भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार देव मंदिर का निर्माण पांचवी सदी से लेकर छठी सदी में किया गया है। कुछ वास्तु कारों के अनुसार यह मंदिर गुप्तकालीन है ।मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे हुए शिलालेख का अध्ययन करने पर पता चलता है कि मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में राजा ऐल द्वारा किया गया था।
  7. देव सूर्य मंदिर के साथ विडंबना यह है कि इसके संरक्षण का प्रयास सरकार द्वारा पूरी तरह से नहीं किया गया है। संरक्षण के अभाव के कारण ही देव मंदिर का पत्थर टुकड़ों में गिर रहा है। मंदिर में पूजा कराने वाले पुजारियों के अनुसार गर्व गृह के बाहर निकलने वाली जलधारा में छोटा-छोटा पत्थर का टुकड़ा आ रहा है और ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कछुआ या चूहा के द्वारा पत्थर का छय किया जा रहा है और ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है ।इससे मंदिर का नुकसान हो सकता है। न्यास समिति द्वारा हर वर्ष मंदिर के पत्थर पर बाजार की पेंट चढ़ा दी जाती है जिससे लीपापोती तो हो जाती है मगर इसकी प्रमाणिकता खत्म हो रही है।
  8. छठ पूजा एक ऐसा महापर्व है जो परिवारों को जोड़ता है बिहार ,झारखंड ,पूर्वी उत्तर प्रदेश के निवासी जो पूरे वर्ष बाहर रहकर कामकाज करते हैं ,वह छठ के दौरान निश्चित रूप से घर आने की कोशिश करते हैं।
  9. छठ महापर्व के दौरान 36 घंटे निर्जला रहना पड़ता है।
  10. छठ महापर्व को एक कठिन वर्तमान आ जाता है लेकिन यह आस्था की शक्ति है कि भूखे पेट रहकर पकवान बनाना और अलग बर्तन मिट्टी का चूल्हा इन सब का प्रयोग करना छठर्वती के मन में उमंग भर देता है ।इस व्रत में पानी पीना भी वर्जित होता है ।खरना के दिन भी खाने से पहले तक पानी नहीं पिया जाता है। यह पर्व आस्था के साथ-साथ स्वच्छता की शक्ति का भी प्रतीक है।
  11. इस महापर्व की तैयारी के दौरान यह भी ध्यान रखना होता है कि बातचीत के दौरान मुंह से निकली थूक की बूंदे उड़कर पूजा के सामानों तक नहीं पहुंचे ।
  12. छठ पूजा का प्रमुख प्रसाद ठेकुआ है।
  13. छठ पूजा का प्रसाद बनाते समय आम की लकड़ी गोयठा, ईख का खोईया का इस्तेमाल जलावन के रूप में किया जाता है।
  14. लोक आस्था का महापर्व छठ पर बिहार के मधुबनी में प्रकृति पूजन उत्सव मनाने का रिवाज है ।चार दिवसीय छठ अनुष्ठान के पहले दिन नहाए खाए को खेतों में पौधारोपण करने का संकल्प छठ व्रतियों द्वारा लिया जाता है। यहां पर प्रत्येक वर्ष 12000 से 13000 फलदार और औषधीय पौधे लगाए जाते हैं ।6 वर्ष पहले झंझारपुर प्रखंड में इस अनूठी परंपरा का शुरुआत हुआ था। यहाॅ मुख्य रूप से आम ,कटहल आंवला, लीची, शरीफा , अमरुद ,जामुन ,निंबू तथा हरसिंगार जैसे उपयोगी पौधे लगाए जाते हैं।