मैं हतप्रभ निस्तेज तुझे देखता चला गया ।

मैं हतप्रभ निस्तेज
तुझे देखता चला गया -2
शून्य छितिज की ओर
ऐसा बढा  की खो गया है
ये क्या हो गया  -2


मैं क्या था
और क्या हो गया
लाचार बेसहारा
और बेचैन हुआ
सूध भी ना रहा स्वयं की
ऐसा फंसा की
फंसा रहा


वापसी अनिश्चित हुई
अपना सब कुछ गंवा चुका
ऐसा फंसा चक्रव्यूह में
ना निकल सका
ना उबर सका


नजरे शून्य हुई
मन बेचैन रहा
एकटक ,अपलक
खोता गया ,खोता गया
मैं हतप्रभ निस्तेज
तुझे देखता चला गया
देखता चला गया।।