हुआ मैं जज्बाती बहुत कैसे तुमको बतलाऊं।

हुआ मैं जज्बाती बहुत
कैसे तुमको बतलाऊं
दुनियादारी भूल गया
क्या मैं खुद को भूल जाऊं


तेरे तन मन की सुंदरता
देखकर मैं अभिभूत हुआ
सुध बुध खोया मैंने अपना
क्या मैं खुद को भूल जाऊं


तेरे प्रेम भरे इशारे
हर पल खींचा करता था
दूर कहीं जाता था जब
वापस लौट आता था


हुआ मैं जज्बाती बहुत
कैसे तुझको बतलाऊं
दुनियादारी भूल गया
क्या मैं खुद को भूल जाऊं


रास्ता तकते तकते तेरा
वक्त यूं ही कट जाता था
बिना मिलाएं नजरों से
कदम कहां वापस लौटता था


होनी अनहोनी में बदली
बदल गई तकदीर हमारी
सोच तुम्हारा भी बदला
बस रह गई तस्वीर तुम्हारी


बातें आज भी करता हूं                      मैं  बस सुनता नहीं कोई
कमी तुम्हारी बहुत खलती है
पर मिलता नहीं तेरे जैसा कोई


हर पल सोचा करता हूं मैं
यादें जो मुझको मिली
डरता हूं जाने से वहां
अंधेरी गलियां ही है भली


हुआ मैं जज्बाती बहुत
कैसे तुझको बतलाऊं
दुनियादारी भूल गया
क्या मैं खुद को भूल जाऊं।।