मैं कवि नहीं किसी रस का ,पर  रस से सराबोर  रहता हूॅ ।।

मैं कवि नहीं किसी रस का
पर  रस से सराबोर  रहता हू
किंचित मात्र कलेश नहीं
सबसे अनन्य प्यार करता हूं


मैं राही नहीं किसी पथ का
पर  पथ से जुडाव रखता
वसुंधरा मां समान है
धरा की लाज रखता हूं


मैं सैनिक नहीं किस देश का
देश से प्यार रखता हूं
ध्वजा के रक्षा धर्म हमारा
धरनी के लाज हेतु चंद्रहास सकता हूं


मैं माली नहीं किसी बगिया का
पर फूलों से लगाव रखता हूं
कांटा का रूप ही सही
पर हर पल साथ रहता हूं


मैं आशिक नहीं किसी आशिकी का
पर दिल से सबको प्यार करता हूं
करुण संवेदना साथ लिए
अखंडित निगाह रखता हूं


मैं हथियार नहीं किसी युद्ध का
पर पैनी निगाह रखता हूं
भद्रा , निशान , वसुंधरा हेतु
विप्लव करने को तैयार रहता हूं


मैं नेता नहीं किसी देश का
पर लोकतंत्र से लगाव रखता हूं
केतु की रक्षा हेतु
हर पल तैयार रहता हूं


मैं पुजारी नहीं किसी मंदिर का
पर ईश्वर  से प्यार करता हूं
धर्म की रक्षा की खातिर
हस्त में खंजर व नाराज रखता हूं


मैं शाश्वत नहीं धरा पर
पर धरा से प्यार करता हूं
धरनी की रक्षा हेतु
कफन बांध तैयार रहता हूं