किस फूल से तुलना करूं मैं तेरी ।

हर फूल मुरझा जाती है
तू तो वह फूल है ए प्रेयसी
जिसकी खुशबू कभी नहीं जाती है

किस नशा से तुलना करूं मैं तेरी                          हर नशा काफूर हो जाती है                                  तेरा नशा जब चढ़ता है मुझ पर
कहां उतर पाती है

किस फूल से तुलना करूं मैं तेरी
किस संगीत से तुलना करूं मैं तेरी                        हर लय पुरानी हो जाती है
तू तो वह संगीत है ऐ प्रेयसी
जो हर मन को भा जाती है


किस नदी से तुलना करूं मैं तेरी
हर नदी में तूफान आती है
तू तो वह धारा है ऐ प्रेयसी
जो शीतल जल बहाती है
किस चांद से तुलना करूं मैं तेरी
हर कला पर ग्रहण लग जाती है
तू तो वह चांद है ऐ प्रेयसी
जो हर  मन को लुभाती है


किस रंग से तुलना करूं मैं तेरी
हर रंग फीकी पड़ जाती है
तू तो वह रंग है ऐ प्रेयसी
जो सतरंगी दुनिया बनाती है


किस सपना से तुलना करूं मैं तेरी                       हर सपना हमें डराती है
तू तो वह सपना है ऐ प्रेयसी
जो  आंखों से दिल में समाती है


किन यादों से तुलना करूं मैं तेरी
हर याद हमें रुलाती है
तू तो वो याद है ऐ प्रेयसी
  जो दिल को खुशनुमा बनाती है 

किस आवाज से तुलना करूं मैं तेरी                      हर आवाज से मन भर जाती है
तू तो वह आवाज है ऐ प्रेयसी
जिसे सुनने को  मन ललचाती  है 

 जीवन के हर मोड़ पर
तू सहसा याद आ जाती है
जब तक मिलो  तुम
चैन नहीं आ पाती है