कैसे बदलती है जिंदगी,
एक अंतराल के बाद
आती है बसंत की बहार,
एक अंतराल के बाद।
प्रातः की पहली किरण ,
लालिमा धरा पर बिखर जाती है,
कलियां उठी थी खिलने को रातों में
,खुलकर निखर जाती है
,है लीला प्रकृति का
खिले फूल मुरझा जाती है
सांयकाल दस्तक देते ही
खुशबू हवा में विलीन हो जाती है
कैसे बदलती है जिंदगी
एक अंतराल के बाद
हाथ पकड़ कर चलने वाले
खड़े होते हैं पैरों पर
छोड़ देते हैं उनका हाथ
जो दिए थे कभी साथ
यादें जब आती है उनकी
पूछ लेते हैं हाल-चाल
मिलने का वक्त नहीं है
सोशल मीडिया पर करते सवाल
कैसे बदलती है जिंदगी
एक अंतराल के बाद
घर गृहस्थी के चक्कर में
छोड़ देते हैं घर बार
अपने पराए हो जाते हैं
जब आती है रोटी का सवाल
दया संवेदना गायब होती
खड़े होते हैं रिश्ते पर सवाल
ऋण पुराने चुका नहीं पाते
लेते रहते हैं ऐहसानों का भाग
रंग बदलती दुनिया में
बदलती रहती है निष्ठा और प्यार
कसमे वादे कर देते हैं
निभा कहां पाते हैं यार
कैसे बदलती है जिंदगी
एक अंतराल के बाद
मां-बाप का स्नेह बुलाकर
कर लेते हैं किसी और से प्यार
खुद का पेट भरता नहीं
पर करते हैं दिखावा हजार
कैसे बदलती है जिंदगी
एक अंतराल के बाद।।