सृजन प्रकृति का वरदान है।

सृजन प्रकृति का वरदान है ।

जीवन का एहसास , नव- विधान है

संकल्प का वैचारिक परिणाम है।

अमूर्त उड़ान का मूर्त ज्ञान है।

वैचारिक चिंतन के विस्तार की दूरी है ।

प्रकृति के हित का संरक्षण जरूरी है।

बीज में विशाल वृक्ष , आत्मा में सृष्टि का दर्शन है।

वेद है ,पुराण है, उपनिषद का ज्ञान है।

मोझ की अवधारणा में ,पुरुष प्रकृति का तत्वज्ञान है ।

यह नित्य है ,निरंतर है, प्रकृति के पथ का राही है ।

शाश्वत है ,चलायमान है ,अविरल है ।

यह ज्ञान दर्शन से हमने पाई है ।

सृजन ही प्रकृति का वरदान है।।

अंधकार है तो प्रकाश है।

पाप है तो पुण्य है ।

अधर्म है, तो धर्म है

धर्म ही प्रकृति का मर्म है।

सृजन ही प्रकृति का वरदान है ।।

जन्म है ,तो मृत्यु है ।

धूप है ,तो छांव है ।

सृजन हो प्रकृति का वरदान है।।