जो समझ ना पाए मुझे
उससे क्या बात करूं ।।
जो सुबह से ही मेरा भेजा खाए
उससे क्या बात करूं ।।
सोने से पहले ही भूत बन जाए
उससे क्या बात करूं ।।
जो गड़े मुर्दे जगाए
उससे क्या बात करूं ।।
जो बात का बतंगड़ बनाए
उससे क्या बात करूं ।।
जो हंसकर मुझे रुलाए
उससे क्या बात करूं ।।
जो मरने से पहले ही मार जाए
उससे क्या बात करूं ।।
समझना तो दूर पहुंच में ही ना आए
उससे क्या बात करूं ।।
जो रिश्तो की खिल्ली उड़ाये
उससे क्या बात करूं ।।
जो दर्द में साथ छोड़ जाए
उससे क्या बात करूं।।
जो मतलब से मिलने आए
उससे क्या बात करूं ।।
जो रुला कर मुस्कुराए
उससे क्या बात करूं ।।
जो झूठा प्यार दिखाएं
उससे क्या बात करूं ।।
जो हरे जख्मों पर नमक छिड़क जाए
उससे क्या बात करूं ।।
जो अपने होकर भी गैर होने का एहसास कराएं
उससे क्या बात करूं ।।