नीतू कुमारी की सुंदर हिंदी कविता- अखंड बन ,प्रचंड बन ,दुश्मनों का खंड-कर।

अखंड बन ,प्रचंड बन ,दुश्मनों का खंड-कर

बढ़ रहे हैं आतताई ,उसका तुम अंत कर

जन्म लिया है भारत में तो, दुश्मनों का खंड-कर

बढ़ रहे हैं दुराचारी ,उसका तुम अंत-कर

अंत- कर अंत- कर अंत- कर

सीमा पर प्रहार हो या अंदरूनी घात हो

दुश्मनों की पहचान कर, उसका तुम अंत -कर

रोड पर आतंक है ,हर तरफ कांड है

बढ़ रहे हैं आतताई, उसका तुम अंत -कर

निस्संश हत्यारे घूम रहे हैं, उनकी पहचान कर

बेड़ियों में जकड़ या उसका अंत -कर

राम की भूमि है ,रावण का अंत -कर

कृष्ण की भूमि है कंस का अंत -कर

अखंड बन प्रचंड बन दुश्मनों का खंड कर

बढ़ रहे हैं आतताई ,उसका तुम अंत कर

आस्तीन के सांप का ,पहचान कर -पहचान कर

निकाल उसको बिल से, उसका भी अंत कर

अखंड बन प्रचंड बन, दुश्मनों का खंडकर

तिरंगे के दुश्मनों का ,जल्दी से पहचान कर

देश का मान गिरे, उससे पहले अंत कर

अखंड बन प्रचंड बन, दुश्मनों का खंड कर

वीरों का सम्मान कर, कायरों का अंत कर

बढ़ रहे हैं देशद्रोही ,उसका तुम अंत कर

एक बंटवारा हो चुका है ,आगे ना तैयार कर

बढ़ रहे हैं आतताई उसका तुम अंत -कर

अखंड बन प्रचंड बन दुश्मनों का खंड कर ।।