मन बेचैन है दिल परेशान क्यों

 

     

यह कविता प्रेम की उलझनों और अंतरद्वंद को दर्शाती है। कवि अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए बता रहा है कि कैसे उसकी प्रिय के होने के बावजूद, उसका मन बेचैन और दिल परेशान रहता है। यह एक प्रेमी के अंतर्द्वंद को उभारता है, जो अपनी प्रेमिका के प्रति असीम प्रेम के बावजूद खुद को संतोषजनक स्थिति में नहीं पा रहा है।कविता में एक गहरा भाव है कि प्रेम की पूर्णता मिलने पर भी, मन और दिल में बेचैनी क्यों बनी रहती है। यह वह सवाल है जो हर प्रेमी के मन में उठता है, जब वह अपने प्रिय से दूर होता है या किसी अनिश्चितता का सामना करता है।कविता में प्रेम की तड़प, मिलन के बावजूद असंतोष, और प्रिय के प्रति गहरी चाहत की अभिव्यक्ति है।

 

                 

 

                  मन बेचैन है

 दिल परेशान क्यों 

जब तू है मेरी 

अंदर संग्राम क्यों ?-2

 

 मिलन हुई बार- बार 

फिर दिल हैरान क्यों 

करता हूं मोहब्बत तुमसे 

फिर तुम मेहमान क्यों ?

 

देखूं तुझे मैं दिल से 

थोड़ा सा सुकून मिले

 चाहा तुझको जी भर के

 थोड़ा सा जुनून मिले ।।-2

आंखें ही मोहब्बत का आईना है

 

मन बेचैन है 

दिल परेशान क्यों 

जब तू है मेरी 

फिर अंदर संग्राम क्यों ? -2

 

फिक्र क्यों रहती तेरी,

 मन मेरा परेशान क्यों 

देखा ना जब तक तुझको,

 हर पल मैं हैरान क्यों  ?-  2

 

ढूंढू तुझे हर पल मैं

हर महफिल वीरान क्यों

 दिल मेरा समझ ना पाया

 तू मुझसे अनजान क्यों  ? -2

 

 मन बेचैन है 

दिल परेशान क्यों 

जब तू है मेरी

 अंदर संग्राम क्यों ? -2

 

बंद कर लूं मैं आंखें तो 

फिर भी तुम दिखती हो 

कैसे समझाएं दिल को 

हर पल बातें करती हो  -2

 

सपनों में आकर मेरे

 मुझको झकझोड़ती हो 

सोने नहीं देती मुझको 

क्या तुम मुझ पे मरती हो  ? -2

 

मन बेचैन है 

दिल परेशान क्यों 

जब तू है मेरी 

फिर अंदर संग्राम क्यों  ?