पास नहीं आती हो मेरे तुम
दूर कहां तुम जाती हो
तन मन में तुम हो समाई
हर पल तुम याद आती हो।।


रचा है ईश्वर ने तुमको
खुद अपने ही हाथों से
है इतना कशिश तुझमें
सबको खींच  तुम लाती हो।।


पास नहीं आती हो मेरे तुम
पर दूर कहां तुम जाती हो।।


नामदेव का आकर्षण तुम हो
विश्वामित्र का मोह हो
देवता भी तुम पे मरते
इंसान की तुम जोड़-तोड़ हो


हर पल तेरे आसक्ति  में
शक्तिविहीन हो जाता मैं
दूर कितना भी चले जाओ
पास तेरे आ जाता मैं।।


पास नहीं आती हो मेरे तुम
पर दूर कहां तुम जाती हो।।


मेरे तन मन में हो समाई
हर पल तुम याद आती हो
उत्तेजित मन की  ज्वाला तुम हो छलकने वाली प्याला तुम हो।।


नशा तुम्हारा इतना प्रबल
सबको तुम खींच लाती हो
पास नहीं जाती हो मेरे तुम
दूर कहां तुम जाती हो।।


मेरे तन- मन में हो समाई
हर पल तुम याद आती हो ।।

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