वो आई थी दौलत लेकर,
मोहब्बत कहां समझ पाती,
हर वक्त दौलत का नशा था उसे,
वह मुझे कहां समझ पाती।।
मैंने अकेलापन में उसे आवाज दिया,
पर उसने हर आवाज को अनसुना कर दिया,
वह दौलत के नशे में थी हरपल,
उसने मेरी जिंदगी को विरान कर दिया।।
भूख जिस्म की कभी शांत होती रही ,
पर मन हर पल बेचैन रहा ,
जिसे मैंने चाहा हर पल हर दिन
उसकी यादों ने मुझे परेशान किया।।
टूट चुका था मैं अंदर से पूरी तरह,
आगे और टूटता चला गया,
जोड़ने को कोई पास में ना था बैठा ,
फिर भी मैं आगे बढ़ता चला गया।।
उनकी शिकायतों का कोई समाधान न था ,
अब मेरी जिंदगी में सिर्फ व्यवधान ही था
खोजने लगा मैं साथी अपने ही जैसा
अब मेरा अपना कोई पहचान न था।।
गमों और आंसुओं से दोस्ती हो गई हमारी
अंधेरा ही अच्छा हमें लगता था
उजालों में जाना मुनासिब न लगा हमें
आखिर कोई ना था जिसे हाले दिल सुनाता ।।