हर तरफ मुर्दों की हो गई भरमार कविता संतोष कुमार सिंह द्वारा रचित

हर तरफ मुर्दों की हो गई भरमार

सोचने की शक्ति है,

तो सोच तो ले

भोगने की शक्ति है,

तो भोग कर ले

खड़े हैं पर सामने ,

हो रहे अत्याचार

मानवता कलंकित है,

कानून है लाचार

जनता मूकदर्शक है ,

नेता है फरेबदार

हर तरफ मुर्दों की हो गई भरमार.

 

उम्मीदें सबकी काफी है,

जनता की है सरकार

प्रतिनिधि अवसरवादी हैं

विरोधी मुखर पर हैं

पर अवसरवादिता का शिकार,

हर तरफ मुर्दों की हो गई भरमार

 

मीडिया बिकी हुई है

हर तरफ है भ्रष्टाचार

जनता मूकदर्शक है

व्यवस्था है तार-तार

न्यायपालिका के पास तराजू है ,

पर आंखें हैं बेजान ,

हर गवाह बिकते हैं ,

कानून है लाचार,

हर तरफ मुर्दों की है भरमार ,

 

संसाधन सीमित है ,

पर उपभोगी बढ़ रहे हैं बारंबार ,

जनसंख्या विस्फोट है,

पर सोचने को कोई नहीं तैयार ,

क्योंकि हर तरफ मुर्दों की हो गई भरमार ,

 

कटाक्ष असीमित है ,

पर समझने को कोई नहीं तैयार ,

गॉडफादर कम है,

पर सबको है इंतजार,

सूटकेस में पड़ी क्षत-विक्षत लाश है,

सबूतों की है भरमार

कानून इतना लाचार है

नारको टेस्ट का कर रहा है इंतजार

हर तरफ मुर्दों की हो गई भरमार

 

अंडरवर्ल्ड सड़क पर है

नेताओं को है उनसे प्यार

चुनाव आने वाले हैं

मंत्री पद पाने को है हर बेकरार

अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त है

महंगाई बारंबार

डी ए का हो रहा है इंतजार

भाड़ में जाए देश

और भाड़ में जाए सरकार

क्योंकि हर तरफ मुर्दों की हो गई भरमार